बिहार की सांस्कृतिक विरासत

बिहार, भारतीय सभ्यता का अमूल्य खजाना है, जिसमें समृद्ध और प्राचीन सांस्कृतिक विरासत बसी है। इस प्रदेश की समृद्ध धरोहर, हिंदू धर्म की रचनात्मकता और बौद्ध धर्म की ध्यानविधि के संगम का प्रतीक है। यहां के विविध रंग-बिरंगे कथाएँ और मिथकों का उल्लेख उन्हीं विचारों को स्पष्ट करता है जो बिहार की सांस्कृतिक धरोहर को निर्मित करते हैं। इस कथा के माध्यम से, हम उस समय के बिहार की यात्रा करेंगे जब उसकी सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत ने भारतीय सभ्यता को विश्वासी बनाया।

श्रावण की कथा- एक समय की बात है, बिहार के एक गाँव में, जिसे श्रावण नामक एक साधु ने अपने आश्रम बना लिया था। यहाँ रहने वाले लोग साधुओं की सेवा करते और उनके उपदेशों को मानते थे। श्रावण आश्रम में एक संतान ने अपनी शिक्षा पूरी की और उसने अपने माता-पिता को साधुओं की सेवा में समर्पित होने का वचन दिया। उसके पिता के मानने पर, वह उसी संतान के रूप में श्रावण आश्रम की सेवा करने के लिए उस आश्रम के द्वार पर पहुँचा।

आश्रम में उसने संतों की सेवा की और उनके शिष्यता का अध्ययन किया। एक दिन, एक बारिश के दिन, जब उसने श्रावण से पानी लेने के लिए जलधारा की ओर जाते हुए एक सुंदर स्त्री को पाया। वह स्त्री अपने पति के लिए पानी ला रही थी, जो एक महाशक्तिमान और साधु थे, लेकिन उनकी आंखों में अंधकार था। श्रावण ने उनका पानी लेने में मदद की और उनके उपकार के बदले में, वह स्त्री ने उसे एक गुप्त रहस्य का प्रकाश किया।

स्त्री ने उसे कहा, “आपने मुझे इतना सहारा दिया, अब मैं आपको एक बड़ी बात से परिचित कराती हूँ। यहाँ जलधारा में पानी निकलने की कहानी है, जिसका नाम है ‘गंगा’। यह गंगा माँ भगीरथ की प्रार्थना से पृथ्वी पर आई थी, ताकि वह अपने पूर्वजों के पापों को धो सके। मगर जब गंगा पृथ्वी पर आई, उसके तेज जलस्वरूप ने पृथ्वी को धराशायी की। इससे महर्षि जह्नु की पुत्री जह्नवी की शादी के लिए ब्रह्मा जी ने गंगा को कठिनाईयों के साथ उत्तर दिया। जह्नु ने अपने तेज जल को संवारकर उसे नदी में परिवर्तित किया और उसका नाम ‘गंगा’ रखा।”

श्रावण ने इस रहस्य के सुनने के बाद स्त्री को धन्यवाद दिया और वहाँ से लौट गया। उसके मन में यह प्रश्न था कि क्या वह इस रहस्य को अपने गुरु और आश्रम के अन्य लोगों के साथ साझा करे।

भगवान शिव का ध्यान – श्रावण ने अपने आश्रम में वापस आकर देखा कि उसके गुरुदेव और आश्रम के लोग अद्भुत गतिविधियों में लगे हुए हैं। उन्होंने उनसे अपने द्वार पर जलधारा में पानी लेने के बारे में सुनाया और उनकी मात्राम उपकार के बारे में बताया। श्रावण की बातों से प्रेरित होकर, गुरुदेव ने उसे बताया कि उसका ध्यान केवल एक ही भगवान के प्रति बना रहना चाहिए – भगवान शिव के प्रति।

श्रावण ने गुरुदेव के उपदेश का पालन किया और वह शिव मंदिर में गया। वहां पहुँचकर, उसने एक छोटे से स्थान पर बैठ कर ध्यान में लग गया। उसने अपने मन को शांत किया और भगवान शिव की ध्यानार्थी अवस्था में प्रवेश किया। ध्यान के दौरान, उसने भगवान शिव की अमृतवाणी सुनी, जो उसे आत्मा की शुद्धता के बारे में शिक्षा देती थी। श्रावण की आत्मा में गहरी ध्यान की अवस्था थी और उसने भगवान शिव के वाणी का आदर्श बनाया।

भगवान राम का दर्शन- श्रावण के ध्यान के बाद, उसका मन श्री राम के दर्शन करने की आकांक्षा से भर गया। उसने अपने गुरुदेव से उसकी यात्रा की इच्छा बताई, जो उसकी आत्मा की शुद्धता को प्राप्त करने के लिए आवश्यक मानी गई। गुरुदेव ने उसे उसकी इच्छा को पूरा करने के लिए अनुमति दी और उसे श्री राम के दर्शन के लिए निर्देश दिए।

श्रावण ने गुरुदेव की सलाह का पालन करते हुए रामायण के पवित्र स्थानों पर अपनी यात्रा शुरू की। उसने अयोध्या, चित्रकूट, पंचवटी, और लंका जैसी स्थलों पर भगवान राम के पवित्र चरित्र का आनंद लिया। उसने ध्यान से प्रभावित होकर रामायण की कथाओं का ध्यान किया और अपनी आत्मा को उनके द्वारा प्रेरित किया।

सीता का आश्रम श्रावण की यात्रा का अंतिम अध्याय सीता माता के आश्रम की ओर था। उसने सीता माता के आश्रम में जाकर उनके प्रेम और विवेक का प्रशंसक बना लिया। सीता माता ने उसे भगवान राम के पवित्र चरित्र के विशेषताओं का उपदेश दिया और उसे अच्छे आचरण की महत्ता को समझाया। श्रावण ने सीता माता के आश्रम में उसके उपदेशों का पालन करते हुए अपने आदर्शों को अधिक समर्थ बनाया।

समाप्ति – इस प्रकार, श्रावण की यात्रा ने उसको अपने आत्मा के निकटतम स्वरूप को पहचानने में मदद की और उसे भगवान शिव, भगवान राम, और सीता माता के प्रति अपनी श्रद्धा को मजबूत किया। उसने अपने आदर्शों का पालन करते हुए एक सच्चे साधक के रूप में अपने जीवन को समर्पित किया। इस कथा के माध्यम से, हम देखते हैं कि बिहार की सांस्कृतिक धरोहर कैसे हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म की महत्वपूर्ण धाराओं में से एक है। यहाँ के विविध धार्मिक स्थलों ने इस प्रदेश को ‘धार्मिक नगरी’ के रूप में उजागर किया है, जो विश्व के अनेक पर्यटकों को आकर्षित करता है।

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